प्रकीर्ण

 

 बहुत-से उदाहरणों से मैंने जाना है कि मेरा चेहरा दर्पण की तरह है जो हर एक को उसकी आन्तरिक अवस्था का चित्र दिखाता है ।

 

२८ जून, १९३१

 

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मेरी इच्छा होती है कि यह उत्तर दूं :

 

    मैं इन सब रूढ़ियों से इतनी दूर रहती हूं कि मैंने इसके बारे में सोचा तक न था ।

 

१३ मई, १९३२

 

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       ( २४ अप्रैल ११२० के बारे में )

 

       मेरे पॉण्डिचेरी लौटने की वर्षगांठ जो विरोधी शक्तियों पर 'विजय' का सुनिश्चित प्रमाण था ।

 

२४ अप्रैल, १९३७

 

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 विरोधी शक्ति पूछती है : ''तुम कौन हों?''

 

         ''मैं वह निष्पक्ष और सच्चा दर्पण हूं जिसमें हर एक अपना सच्चा रूप देखता है । ''

 

२५ मार्च, १९५२

 

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 मन में ' अतिमानस ' बहुत पहले उतर चुका था-बहुत, बहुत पहले- और प्राण तक में भी : वह भौतिक में भी कार्य कर रहा था लेकिन परोक्ष रूप से, मध्यस्थों के दुरा । प्रश्न था भौतिक में ' अतिमानस ' की सीधी क्रिया का । श्रीअरविन्द ने कहा, यह तभी सम्भव हो सकता है अगर भौतिक मन

 


अतिमानसिक ज्योति को पा ले : अत्यन्त जड़-भौतिक पर सीधी क्रिया करने के लिए भौतिक मन हीं यन्त्र था । अतिमानसिक प्रकाश को ग्रहण करने वाले इस थोपती मन को श्रीअरविन्द ने नाम दिया ' प्रकाश का मन ' ।

 

२५ जून, १९५३

 

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 जैसे हीं श्रीअरविन्द ने अपना शरीर त्यागा, उसी समय जिसे वे ' प्रकाश का मन ' कहते हैं, वह मेरे अन्दर चरितार्थ हो गया ।

 

 केन्द्रीय वृत्त ' भागवत चेतना ' का प्रतीक है ।

             चार पंखुड़िया माता की चार शक्तियों की प्रतीक हैं ।

 

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       बारह पंखुड़िया माता की बारह शक्तियों की जो उनके काम के लिए अभिव्यक्त हुई हैं ।

 

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 केन्द्रीय वृत्त परम जननी, ' महाशक्ति ' का प्रतीक है ।

 

      चार केन्द्रीय पंखुड़िया मां के चार रूप हैं- और बारह पंखुड़िया, उनकी बारह कलाएं ।

 

१९५५

 

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 यह 'परम चेतना ' के श्वेत 'कमल ' का प्रतीकात्मक चित्र है । इसके केन्द्र मे ' महाशक्ति ' (मां का वह रूप जो वैश्व सृष्टि में व्यक्त हुआ) अपने चार रूपों और बारह कलाओं के साथ हैं ।

 

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श्रीअरविन्द कहते हैं : ''शिक्षा का सच्चा आधार है मानक मन कार बाल किशोर और वयस्क मन का अध्ययन '' आलोकन इसका अध्ययन कैसे किया जाता है? कहां से शुरू किया जाता हैं? इस अध्ययन ये कौन-से कदम उठाने होने?

 

 मुझसे मन के बारे में कोई प्रश्न मत पूछो; मुझे अब उसमें कोई रस नहीं रहा । मेरा ध्यान अधिमान के साथ जुड़ने पर लगा है ।

 

१ दिसम्बर, १९७२

 

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            समस्या का समाधान प्राप्त करना कैसे सीख़ें ?

 

 मैं यह मन से नहीं दे सकतीं; इसे अन्दर से पाना होगा ।

 

१७ फरवरी १९७३

 

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मेरी सहायता हमेशा तुम्हारे साथ हैं और हमेशा की तरह सक्रिय है; लेकिन मैं अब मानसिक रूप से उत्तर नहीं देती ।

 

५मार्च,१९७३

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 तुम क्यों चाहते हो कि मैं कुछ कहूं ?

          मौन में सबसे बड़ी शक्ति है ।

 

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